रविवार, 2 नवंबर 2008

क्या इसी दिन के लिए लिया था गोद

क्या बताऊँ बेटा मैं तो अपने घर मैं ही बेगानी सी हो गयी, वो डोकरा (अपने पति की और इशारा करते हुए) भी बहुत दुखी है, पेरों से लाचार होने के कारन कुछ नही कर सकता, बस मुह से कहता रहता है, लेकिन सुने कोण, सब जगह ताले डालकर चाबी कमर मैं खोंस कर घूमती है महारानी, मेरे कोंसी तीन चार बेटियाँ है बस एक ही तो है लेकिन अभी से ही तरस गयी है मइके को, मैं इसे गोद नही लेती तो कम से कम एक ही दुःख होता की मेरे बेटा नही है, लेकिन अब तो मेरे सो दुःख हो गए हैं, क्या इसी दिन के लिए मैंने इसे गोद लिया था, यह कहते कहते काकी अपनी आंखों मैं आयी बाद नही रोक पाई और ओदनी के कोर से आंसू पोंछती हुयी, अपनी झुकी कमर को हाथ मैं पकड़ी लाठी पर संभालती हुई चलदी अपने घर।
शिवराज गूजर

4 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

bahot hi marmik ,aankhen nam ho gai... aapko sadhuwad..

सोनाली सिंह ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है और हां, कमेंट बॉक्स में ये वर्ड वेरीफिकेशन का ऑप्शन हटाईए बेहतर रहेगा!

Unknown ने कहा…

सत्य को निरुपीत करता लेख उत्तम

dakardaines ने कहा…

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