शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

मैं घर पर नही हूँ

राजू , अरे सुन तो बेटा,
मिसेज शर्मा की बात पूरी होने तक तो राजू जा चुका था दरवाजे से बाहर,
ये राजू भी न, जानकी देवी के बुलावे के बाद तो किसी की नही सुनता, मैं जब काम बताती हूँ तो ममा ये कर रहा हूँ , ममा वो कर रहा हूँ, लाख बहने हैं इसके पास,
बुदबुदाती हुई मिसेज शर्मा अपने काम मैं लग गयी,उधर राजू जब जानकी देवी के पास पहुँचा तो वह खाना पकाने की तयारी मैं थी, राजू को देखते ही बोली,
सुबह तू कहाँ चला गया था,
वो मोसी के यहाँ चला गया था,
क्यों कोई काम था,
हाँ वो सब्जी लानी थी, सुबह भी दाल ही बनाई,
अभी ले आऊंगा आंटी,
राजू का ध्यान जानकी देवी की बातों मैं कम और इधर उधर देखने मैं जयादा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी को दूंद रहा हो, अंत मैं उससे रहा नही गया और उसने पूछ ही लिया,
आंटी , सीमा दिखाई नही दे रही आज,
अरे हाँ मैं तुम्हें बताने ही जा रही थी, वो सुबह पापा आए थे, उसे भी साथ ले गए, कह गए थे अबउसके गाँव की स्कूल मैं ही भरती कराएँगे,
ओह, अब कब आएगी,
आने का तो कुछ नही कह सकती बेटा, वो तो मेरे कहने से दामाद जी ने कुछ दिन के लिए मेरे पास छोड़ दिया था,
यह सुनते ही राजू बिना कुछ बोले चल दिया, बाहर की, औरयह देख जानकी देवी ने उसे आवाज दी,
अरे बेटा, सब्जी तो ले आ,
बाद मैं देखूँगा आंटी, कल टेस्ट है पदाई करनी है।
राजू बुदबुदाता हुआ घर मैं घुसा तो मिसेज शर्मा ने पूछ लिया,
क्या हुआ बेटा, किस पर नाराज हो रहे हो,
कुछ नही ममा, लोग सबको अपनी तरह फालतू समझते हैं, जब देखो, बेटा ये ले आओ, बेटा वो ले आओ, आगे से जानकी आंटी कभी आवाज लगाये तो कह देना मैं घर पर नही हूँ,
शिवराज गूजर

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

आपकी कहानियो को www.hindikahaniya.com पर पोस्ट करे वह पाठको के सख्या बहुत हे