बुधवार, 9 अगस्त 2017

अगले जनम मोहे कुतिया कीजो

  • शिवराज गूजर 
हे भगवान कौन से जन्मों के पापों की सजा दे रहा है मुझे ? यह गंदगी भी मेरी छाती पर ही छोड़नी थी। पूरा घर गंदगी से भर दिया इस बुढ़िया ने। 
बीमार सास को गालियां देते हुए नाक बंद कर घर में घुसती मिसेज शर्मा नौकरानी पर चिल्लाई ।
कांताबाई ! अरी कहां मर गई तू भी।
तभी बगल वाले कमरे से आई सास ने पीछे से कुर्ता खींचते हुए  पुकारा
-बहू ! 
-हट बुढ़िया दूर रह, अभी फिर से नहाना पड़ेगा मुझे। 
सास को धक्का देते हुए मिसेज शर्मा बोली, तभी नौकरानी पर नजर पड़ी । 
कांताबाई ! यह तो दिन भर गंदगी करेगी, तू तो साफ कर दिया कर। 
अभी और कुछ कहती, उससे पहले ही कांताबाई बोली
-लेकिन मालकिन आज तो मांजी ने कुछ भी गंदगी नहीं की। एक दो बार हाजत हुई भी थी तो मुझे बुला लिया था तो मैं टॉयलेट में करा लाई थी।
- तो फिर यह गंदगी ? 
-अपने डॉगी को दस्त लग गए हैं। 
-अरे बाप रे मेरा बेटू।  क्या हो गया उसे ? 
मिसेज शर्मा चीखती सी बोली । तभी चूं चूं करता डोगी उनके पास आ गया । मिसेज शर्मा उसे पुचकारते हुए उसके पास बैठने लगी, तो कांताबाई बोली 
-मालकिन कपड़े गंदे हो जाएंगे । 
-अरे हो जाने दे, कपड़े कोई डागी से बढ़कर है क्या ?
कहते हुए मिसेज शर्मा वहीं बैठ गई और डोगी पर हाथ फेरने लगी। अब कमरे से गंदगी और बदबू गायब हो चुकी थी । दूर से यह सब देख रही साथ डोगी की किस्मत से रश्क कर रही थी । शायद भगवान से दुआ मांग रही थी-अगले जनम मोहे कुतिया ही कीजो।
(30 जुलाई को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित )

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