शनिवार, 23 अगस्त 2008

नजरिया

देखो तो कैसे ठूंस -ठूंस कर भर रखी है सवारियां, कोई मरे तो मरे इनका क्या ? इन्हें तो बस सवारियों से मतलब,आती जाती बसों की स्थिति पर बगल में खड़े शर्माजी कंडक्टरों और बस मालिकों को कोस रहे थे, इसी दौरान उनकी बस आ गईउसकी हालत औरों से ज्यादा ख़राब थी , शर्माजी बस की और लपके , मैंने कहा, शर्माजी बहुत भीड़ है, पीछे वाली मैं चले जाना , पीछे वाली कोनसी खाली आएगी, उसका भी यही हाल होगा , ऐसे इंतजार करता रहा तो जा लिया दफ्तर, बात पूरी होने तक शर्माजी बस पर लटक चुके थे एक पैर पर,
शिवराज गूजर

1 टिप्पणी:

shama ने कहा…

Aapke aamantranka bohot shukriya,aur aapkee tippaneekabhee...aapke blog kaa chhota-sa safar kiya..."Nazriya"...kitnaa sahee likha hai...hamare bolne aur karneme kitnasa antar hota hai...?