tag:blogger.com,1999:blog-42538111966742079642024-03-19T01:06:05.680-07:00LAGHU KAHANI (लघु कहानी)Unknownnoreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-66616053257095991682017-08-09T10:24:00.002-07:002017-09-01T01:50:59.754-07:00अगले जनम मोहे कुतिया कीजो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="auto">
<ul style="text-align: left;">
<li><b><span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">शिवराज गूजर</span><span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;"> </span></b></li>
</ul>
</div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">हे
भगवान कौन से जन्मों के पापों की सजा दे रहा है मुझे ? यह गंदगी भी मेरी
छाती पर ही छोड़नी थी। पूरा घर गंदगी से भर दिया इस बुढ़िया ने। </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">बीमार सास
को गालियां देते हुए नाक बंद कर घर में घुसती मिसेज शर्मा नौकरानी पर
चिल्लाई ।</span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">कांताबाई ! अरी कहां मर गई तू भी।</span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">तभी बगल वाले कमरे से आई सास
ने पीछे से कुर्ता खींचते हुए पुकारा</span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">-बहू ! </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">-हट बुढ़िया दूर रह, अभी फिर से
नहाना पड़ेगा मुझे। </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">सास को धक्का देते हुए मिसेज शर्मा बोली, तभी नौकरानी
पर नजर पड़ी । </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">कांताबाई ! यह तो दिन भर गंदगी करेगी, तू तो साफ कर दिया
कर। </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">अभी और कुछ कहती, उससे पहले ही कांताबाई बोली</span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">-लेकिन मालकिन आज तो
मांजी ने कुछ भी गंदगी नहीं की। एक दो बार हाजत हुई भी थी तो मुझे बुला
लिया था तो मैं टॉयलेट में करा लाई थी।</span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">- तो फिर यह गंदगी ? </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">-अपने डॉगी को
दस्त लग गए हैं। </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">-अरे बाप रे मेरा बेटू। क्या हो गया उसे ? </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">मिसेज शर्मा
चीखती सी बोली । तभी चूं चूं करता डोगी उनके पास आ गया । मिसेज शर्मा उसे
पुचकारते हुए उसके पास बैठने लगी, तो कांताबाई बोली </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">-मालकिन कपड़े गंदे हो
जाएंगे । </span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">-अरे हो जाने दे, कपड़े कोई डागी से बढ़कर है क्या ?</span></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;">कहते हुए मिसेज
शर्मा वहीं बैठ गई और डोगी पर हाथ फेरने लगी। अब कमरे से गंदगी और बदबू
गायब हो चुकी थी । दूर से यह सब देख रही साथ डोगी की किस्मत से रश्क कर रही
थी । शायद भगवान से दुआ मांग रही थी-अगले जनम मोहे कुतिया ही कीजो।</span></div>
<div dir="auto">
</div>
<div dir="auto" style="text-align: right;">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;"><b>(30 जुलाई को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित )</b></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcuYtTKE9maFISJ8taW_onmy59ZSBrCtIm0CUc7GOQFW4zc5bbNQrTJNtGLOdvGf88JsetZvYMQddWrZUP2c-gScm7bTqnp1Kr9PjnxBEcA6a32G6J1ZHvo-ajREci1jVrai-iadiXRsc/s1600/laghu+kahani.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1127" data-original-width="640" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcuYtTKE9maFISJ8taW_onmy59ZSBrCtIm0CUc7GOQFW4zc5bbNQrTJNtGLOdvGf88JsetZvYMQddWrZUP2c-gScm7bTqnp1Kr9PjnxBEcA6a32G6J1ZHvo-ajREci1jVrai-iadiXRsc/s400/laghu+kahani.jpg" width="226" /></a></div>
<div dir="auto">
<span style="font-family: "helvetica neue" , "arial" , "sans" , sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-75035701841015846952016-02-08T05:03:00.006-08:002020-12-16T04:03:14.117-08:00 काश! पलक जानती-यह तीली कितना जलाती है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5oj02mhkrsfLAsjAl73TcvUxOBPT2d3skcakimmfm4BZ3Jl_0Mbxdy23uLz8vENJlZ72-75Ph8u6zxl44ZpV8-Yx72uq_uBcF-mg7vLWgm5OOmOmyAkRrs1-qRmcqN5efjXJkBEGMVVc/s1600/match+stick.JPG" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="196" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5oj02mhkrsfLAsjAl73TcvUxOBPT2d3skcakimmfm4BZ3Jl_0Mbxdy23uLz8vENJlZ72-75Ph8u6zxl44ZpV8-Yx72uq_uBcF-mg7vLWgm5OOmOmyAkRrs1-qRmcqN5efjXJkBEGMVVc/s320/match+stick.JPG" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
एक आठ साल की बच्ची पलक के बस में जिंदा जल जाने की खबर ने अंदर तक हिला कर रख दिया। खबर यूं थी कि -बच्ची ने पिता द्वारा सिगरेट के पैकेट के साथ छोड़ी गई माचिस के साथ बाल-सुलभ छेडख़ानी की। तीली जली, मजा आया और वो खेलने लगी।<br />
<a name='more'></a> खेल-खेल में कब कपड़ों में आग लगी पता नहीं चला। सोचकर देखिए, क्या वो पिता अपने आपको कभी माफ कर पाएगा जिसकी-सिगरेट पीने की आदत ने उससे प्यारी सी बेटी छीन ली। माचिस की तीली जब-जब उसके हाथ में आएगी दिल के किसी न किसी कोने में अपनी बेटी के लिए हूक जरूर उठेगी।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
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बच्चों के प्रति लापरवाही की यह अकेली घटना नहीं है। ऐसे वाकये आए दिन सुनने और पढऩे को मिलते रहते हैं। हम और आप ही में से किसी की छोटी सी गलती या तो पलक जैसे मासूम की जान ले लेती है या फिर उसे जिंदगी भर का दर्द दे जाती है। काश! पलक यह जानती कि माचिस की तीली से निकली आग कितनी भयानक हो सकती है। अगर उसे पता होता तो वह शायद छूती भी नहीं। </div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-1341022510912486792016-01-22T05:15:00.002-08:002017-08-15T10:50:21.508-07:00रिश्तों का पर्दा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अमूमन मैं शादियों में बहुत कम जाता हूं, मगर इस बार श्रीमती जी अड़ गर्इं। कहने लगीं 'आपको चलना ही पड़ेगा। वह मेरी मुंह बोली बहन है और फिर आपकी भी तो कुछ लगती है।' बात में दम था। मैं बेदम हो गया। <br />
खैर! मैं भी तैयार होकर हो लिया साथ श्रीमती जी के शादी में शरीक होने के लिए।<br />
<a name='more'></a><br />
रोशनी में जगमगाता पांडाल। रंग-बिरंगे कपड़ों में लिपटे लोग हंसी ठहाकों के बीच खाने का आनंद ले रहे थे। अभी मैं इस माहौल में खोया हुआ था कि मेरे कानों में शहद घोलती सी मगर जोर की आवाज पड़ी-'जीजाजी'। मैं मुड़ा, देखा सामने शीला दुल्हन के जोड़े में सजी खड़ी थी। मैंने व श्रीमती जी ने उसे भावी जीवन की शुभकामनायें दीं। फिर मैंने कहा 'शीला! अरे भई अपने दूल्हे से तो मिलाओ। उस चांद को हम भी तो देखें जिसकी चांदनी में तुम्हारा चेहरा इतना दमक रहा है।' अपनी तारीफ सुनकर वह थोड़ी लजा सी गई थी। फिर उसने लाज मिश्रित प्रसन्नता से मुड़कर अपने पीछे खड़े दोस्तों में मशगूल दूल्हे को आवाज दी। आवाज का पीछा करती जब मेरी नजर लक्ष्य पर पहुंची तो जो देखा वह किसी अजूबे से कम नहीं था। यह तो वही शख्स था जिससे पिछली बार उसने धर्म भाई कहकर मिलवाया था। विस्मय में डूबे जब मैंने उससे यह बात पूछी तो वह हंसकर बोली 'आप भी जीजाजी, इतना भी नहीं समझते। यह तो पर्दा था दुनिया की नजर से अपने प्यार को बचाने का। ' और वह फिर मशगूल हो गई थी श्रीमती जी से बातों में । मैं सोचता ही रह गया रिश्तों के इस अगाढ़ पर्दे के बारे में जो कितना गाढ़ा है, हर एब छुपा लेता है।</div>
Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-41210474630052678032009-04-01T08:34:00.000-07:002017-08-15T10:51:11.394-07:00यूँ भी होता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गोद मैं बच्चा लिए व हाथ मैं झोला लटकाए एक ग्रामीण महिला बस मैं चडी, सीट खाली नही देख एक दम से वह निराश हो गयी, फिर भी जैसा कि बस मैं चड़ने वाला हर यात्री सोचता है कि शायद किसी सीट पर अटकने कीजगह मिल जाए, वह भी पीछे की और चली, तभी उसकी नजर एक सीट पर पड़ी , उस पर बस एक युवक बेठा था, आंखों मैं संतोष की चमक आ गयी, पास जाने पर जब उस पर कोई कपडा या कुछ सामान नही दिखायी दिया तो उसने धम्म से शरीर को छोड़ दिया सीट पर,<br />
<a name='more'></a><br />
अरे रे कहाँ बेठ रही हो, यहाँ सवारी आएगी,<br />
आंखों मैं उभरी चमक घुप्प से गायब हो गयी , आगे और सीट देखने की हिम्मत उसमें नही रही और वह वहीं सीटों के बीच गैलरी मैं ही बेठ गयी, इसके बाद उस खालीसीट को देख कर कईं आंखों मैं चमक आती रही और बुझती रही,तभी एक युवती बस मैं चडी , अन्य लोगों को खड़ा देख उसने समझ लिया कि वह सीट खाली नही है, कोई आएगा, नीचे गया होगा, टिकेट या फिर कूछ लेने , और वह भी खड़ी हो गयी महिला के पास,<br />
बेठ जाइये न, यहाँ कोई नही आएगा,<br />
इस आवाज पर युवती ने मुड़कर देखा तो युवक उससे ही मुखातिब था,उसने आश्चर्य से पूछा कोई नही आएगा,<br />
जी नही,<br />
युवक उसी मुस्कान के साथ बोला, इस पर युवती मुडी और नीचे बेठी उस बच्चे वाली महिला को वहां बेठा दिया,अब युवक का चेहरा देखने लायक था, वह युवती को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था,<br />
<b><i><span style="color: #333399;">शिवराज गूजर</span></i></b></div>
Unknownnoreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-86346000700917666562008-12-24T10:22:00.000-08:002008-12-24T10:24:27.134-08:00नास्तिकमैं बस में बेठा बाहर हो रही बरसात का मजा ले रहा था<br />कोई आएगा इस पर<br />अजनबी आवाज सुनकर मैं मुडा, आवाज के मालिक पर नजर गई, उम्र यही कोई २५ -३० साल, आंखों पर नजर का चस्मा चड़ाये, महाशय सवालिया नजरों से मुझे देख रहे थे,<br />फिलहाल तो नही<br />मैंने उसका मुआयना करते हुए कहा,<br />आप कहाँ तक जायेंगे ?<br />उसने धम्म से बैठते हुए दूसरा सवाल दाग दिया,<br />टोडारायसिंह, और आप,<br />बात बढाने की गरज से मैंने पूछा<br />भांसू<br />उसकी बात ख़त्म होने के साथ ही बस झटके से आगे बाद गई, बस चलने के साथ ही बातों का सिलसिला चल निकला, बात चलते-चलते आ पहुंची दुनिया के सृजक पर , उसके अस्तित्व के होने न होने पर, इस बात को लेकर हम दोनों मैं बहस छिड़ गई, वह उसके अस्तित्व को पूरी तरह नकार रहा था, और मैं इस बात पर अदा था की वो इस दुनिया मैं है चाहे किसी भी रूप मैं हो। मेरे अपने तर्क थे तो उसकी अपनी काटें, इससेपहले की हमारी बहस उग्र होती ब्रेकों की चरमराहट के साथ ही बस रुक गयी, पता चला की नदी मैं पानी ज्यादा आ गया है, जो पुल पर से बह रहा है, ऐसे मैं बस पुल पर से नही गुजर सकती, पानी उतरने मैं देर लगनी थी सो हम भी उतर आए नीचे, नदी के दोनों और वाहनों की लाइन लगी थी, इधर वाले इस किनारे खड़े थे तो उधर वाले उस किनारे, तभी एक ट्रक आया, उसमें से चालक और खलाशी उतरे पानी का अंदाजा लगाया और ट्रक घुसा ले गए पानी मैं, देखते ही देखते ट्रक नदी के पार निकल गया,<br />यह देख हमारी बस के चालक को भी जोश आ गया और उसने भी घुसा दी बस पानी मैं, नदी के बीच मैं पहुँचते ही बस ने अचानक धक्का सा खाया, इसी के साथ पूरी बस श्रीजी के जयकारों से गूँज उठी,<br />सबसे पहले जय बोलने वाला मेरी बगल मैं बैठा वाही शख्स था जो पूरे रस्ते ऊपरवाले के अस्तित्व को नकार रहा था,<br /><strong><em><span style="color:#6600cc;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-54237477851948594282008-11-18T07:17:00.000-08:002008-11-18T07:20:39.618-08:00डररामू नया -नया जयपुर आया था गाँव से , पुलिया के नीचे आदमियों की भीड़ ज्यादा दिखी तो वहीं बगल मैं लगा लिया मूंगफली का ठेला, अभी बोहनी भी नही हुयी थी किएक आदमी आया और ठेले मैं से मुठी भर कर मूंगफली उठाई और चलता बना, रामू ने उसे आवाज देकर पैसे के लिए कहा तो भद्दी सी गाली देते हुए रामू को मरने के लिए झपटा, रामू भी कोई कम नही था, अभी-अभी बीसवें साल मैं कदम रखा ही था, सरीर भी माता-पिता के लाड और झुमरी गायके दूध कि बदोलत आसपास के गाँव मैं किसी का नही था ऐसा पाया था, ऐसे मैं वो कहाँ दबने वाला था, एक ही दावमैं उस आदमी को जमीन दिखा दी, और फ़िर जो लगा दे दनादन जो उसे तबला बना दिया, तभी भीड़ मैं से कोई चिल्लाया<br /><span class=""> अरे </span>ये तो बिल्लू दादा है , अब ये ठेले वाला तो गया कम से, दादा की इजाजत के बगेर तो इस इलाके मैं पत्ता भी नही हिलता,<br />रामू के हाथ जहाँ के तहां रुक गए, सीन बदल गया था, अब हाथ दादा के चल रहे थे और रामू गिडगिडा रहा था, माफ़ी मांग रहा था,<br /><strong><em><span style="color:#333399;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-58592028700514411282008-11-15T05:05:00.000-08:002008-11-15T05:09:19.722-08:00खुजली<p>एक बार ब्रह्माजी की दाडी में खुजली हो गयी, सलाह मशविरे के बाद दाडी कटवाने का निर्णय लिया गया, हज्जाम बुलाया गया, हज्जाम रस्ते में नारद से टकरा गया, हड़बड़ी का कारन जाने बिना नारदजी उसे कहाँ छोड़ने वाले थे, सारीबात पता चलने पर उन्होंने हज्जाम से एक वचन ले लिया कि वो दाडी के बाल कहीं फेंकने के बजाय उन्हें लाकर देदे, हज्जाम ने ऐसा ही किया, नारदजी ने सारे बाल अपने कमंडल में डाले और मृत्यु लोक में छिड़क दिए, उससे जो जीव पैदा हुए वो पत्रकार बने, </p><p><strong><em><span style="color:#6600cc;">शिवराज गूजर</span></em></strong> </p>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-10179692908919911752008-11-12T07:03:00.000-08:002008-11-12T07:08:01.684-08:00भूख स्वाद नही देखतीपप्पू बुरी तरह घबरा गया था, हड़बड़ी मैं किसी और का आर्डर मिस्टर बवेजा को दे आया था, बवेजा का गुस्सा वो पहले देख चुका था, नमक कम होने पर ही वो कई बार खाना फ़ेंक चुका था, कंपकंपाता वो डाबा मालिक रामलाल के पीछे जाकर खड़ा हो गया, राम लाल ने उसे इसतरह खड़ा देखा तो डाँटते हुए <span class="">बोला </span><br /><span class=""></span>अबे ओये पप्या यहाँ खड़ा-खड़ा क्या कर रहा है, ग्राहकों को क्या तेरा बाप देखेगा,<br />लेकिन पप्पू वहां से हिला तक नही, यह देख रामलाल समझ गया कि कुछ गड़बड़ हो गयी है, उसने पप्पू कों पुचकारा तो उसने सारीबात बता दी, मामला समझने के बाद रामलाल के चहरे पर भी चिंता कि लकीरें दिखाई देने लगी, लेकिन अब क्या हो सकता था,<br />अब क्या होगा दादा,<br />पप्पू ने डरते हुए पूछा,<br />वही होगा जो मंजूरेबवेजा होगा,<br />रामलाल इससे ज्यादा नही बोल सका, तभी किसी ग्राहक ने आवाज दी,<br />हाँ भइया कितना देना है,<br />रामलाल ने देखा बवेजा काउंटर पर खड़ा था, लेकिन वह सामान्य नजर दिखाई दे रहा था, गुस्से का कोई भावः उसे नही दिखा, तो उसकी चिंता ख़त्म हो गयी और उसने पप्पू से पूछ कर पेमेंट ले लिया,जब वह चला गया तो पप्पू रामलाल के पास आकर बोला,<br />आज तो कमाल ही हो गया दादा, नमक कम होने पर ही थाली फ़ेंक देने वाला सादा खाना खाकर खाकर चला गया और वो भी बिना कुछ बोले,<br />भूकस्वाद नही देखती पप्या भूख मैं भाटे भी स्वादिस्ट लगते हैं,<br /><span class=""> पप्पू</span> के कुछ समझ मैं नही आया था, लेकिन उसने समझने वाले अंदाज मैं सर हिला दिया,<br /><strong><em><span style="color:#333399;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-80509842685419393452008-11-03T08:36:00.000-08:002008-11-03T09:45:28.082-08:00उसकी बात और हैभूरी आंखों वाली औरतें बड़ीचालू होती हैं , एक सज्जन अपनी सगाई का एल्बम मित्र को दिखाते हुए औरतों की फितरत के बारे में बता रहेथे,<br />उसकी मंगेतर की फोटो देख मित्र ने कहा, भाई संभलकर रहना, जिससे तेरी शादी होने जा रही है वो भी भूरी आंखों वाली ही है,<br />उसकी बात और है यार , पहले वाले सज्जन झेंपते हुए बोले,<br /><strong><em><span style="color:#6600cc;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-27130776985495918802008-11-02T07:41:00.000-08:002008-11-02T07:43:49.572-08:00क्या इसी दिन के लिए लिया था गोदक्या बताऊँ बेटा मैं तो अपने घर मैं ही बेगानी सी हो गयी, वो डोकरा (अपने पति की और इशारा करते हुए) भी बहुत दुखी है, पेरों से लाचार होने के कारन कुछ नही कर सकता, बस मुह से कहता रहता है, लेकिन सुने कोण, सब जगह ताले डालकर चाबी कमर मैं खोंस कर घूमती है महारानी, मेरे कोंसी तीन चार बेटियाँ है बस एक ही तो है लेकिन अभी से ही तरस गयी है मइके को, मैं इसे गोद नही लेती तो कम से कम एक ही दुःख होता की मेरे बेटा नही है, लेकिन अब तो मेरे सो दुःख हो गए हैं, क्या इसी दिन के लिए मैंने इसे गोद लिया था, यह कहते कहते काकी अपनी आंखों मैं आयी बाद नही रोक पाई और ओदनी के कोर से आंसू पोंछती हुयी, अपनी झुकी कमर को हाथ मैं पकड़ी लाठी पर संभालती हुई चलदी अपने घर।<br /><strong><em><span style="color:#6600cc;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-15255533454895021672008-10-25T08:30:00.000-07:002008-10-25T08:35:51.159-07:00मैं घर पर नही हूँराजू , अरे सुन तो बेटा,<br />मिसेज शर्मा की बात पूरी होने तक तो राजू जा चुका था दरवाजे से बाहर,<br />ये राजू भी न, जानकी देवी के बुलावे के बाद तो किसी की नही सुनता, मैं जब काम बताती हूँ तो ममा ये कर रहा हूँ , ममा वो कर रहा हूँ, लाख बहने हैं इसके पास,<br />बुदबुदाती हुई मिसेज शर्मा अपने काम मैं लग गयी,उधर राजू जब जानकी देवी के पास पहुँचा तो वह खाना पकाने की तयारी मैं थी, राजू को देखते ही बोली,<br />सुबह तू कहाँ चला गया था,<br />वो मोसी के यहाँ चला गया था,<br />क्यों कोई काम था,<br />हाँ वो सब्जी लानी थी, सुबह भी दाल ही बनाई,<br />अभी ले आऊंगा आंटी,<br />राजू का ध्यान जानकी देवी की बातों मैं कम और इधर उधर देखने मैं जयादा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी को दूंद रहा हो, अंत मैं उससे रहा नही गया और उसने पूछ ही लिया,<br />आंटी , सीमा दिखाई नही दे रही आज,<br />अरे हाँ मैं तुम्हें बताने ही जा रही थी, वो सुबह पापा आए थे, उसे भी साथ ले गए, कह गए थे अबउसके गाँव की स्कूल मैं ही भरती कराएँगे,<br />ओह, अब कब आएगी,<br />आने का तो कुछ नही कह सकती बेटा, वो तो मेरे कहने से दामाद जी ने कुछ दिन के लिए मेरे पास छोड़ दिया था,<br />यह सुनते ही राजू बिना कुछ बोले चल दिया, बाहर की, औरयह देख जानकी देवी ने उसे आवाज दी,<br />अरे बेटा, सब्जी तो ले आ,<br />बाद मैं देखूँगा आंटी, कल टेस्ट है पदाई करनी है।<br />राजू बुदबुदाता हुआ घर मैं घुसा तो मिसेज शर्मा ने पूछ लिया,<br />क्या हुआ बेटा, किस पर नाराज हो रहे हो,<br />कुछ नही ममा, लोग सबको अपनी तरह फालतू समझते हैं, जब देखो, बेटा ये ले आओ, बेटा वो ले आओ, आगे से जानकी आंटी कभी आवाज लगाये तो कह देना मैं घर पर नही हूँ,<br /><strong><em><span style="color:#6600cc;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-78223175037084375172008-10-16T08:29:00.000-07:002008-10-16T08:31:27.447-07:00मुझसे शरमा रही हैयोन शिक्षा पर लिखी गयी पुस्तक के लेखक का टीवी के लिए इंटरव्यू चल रहा था, उन्होंने पुस्तक मैं पुरजोर तरीके से यह बात उठाई थी कि बच्चों को योन शिक्षा डायनिंग टेबल पर दी जानी चाहिए , अपने लेखन मैं उन्होंने अपनी धर्मपत्नी का बराबर का हाथ बताया था, जाहिर था उनके साथ उनकी अर्धांगिनी का भी इंटरव्यू जरूरी था, लेकिन वो बोलने मैं बार-बारअटक रही थी, हमने समझा वो कैमरे के सामने ख़ुद को असहज महसूस कर रही है सो उन्हें खोलने के लिए कहा, आप बोलिए मैडम, यह तो रिहर्सलहै फाइनल टेक बाद मैं लेंगे, तभी लेखक महोदय बीच मैं ही बोल पड़े, नही ऐसी कोई बात नही है, योन संबंधों की बात है न, इसलिए ये मेरे सामने झिजक रही है, यह कह कर वे भीतर चले गए, अब इंटरव्यू निर्बाध चल रहा था,<br /><strong><em><span style="color:#000099;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-89278842287425708482008-10-11T05:56:00.000-07:002008-10-11T06:02:43.272-07:00विडंबनाचांदपोल चलोगे,<br />इस शब्द ने जैसे कालू के कानो मैं सहद घोल दिया, वह अभी घर से रिक्शा लेकर बड़ी चोपड पहुँचा ही था, ऐसा कभी - कभार ही होता थाकि पहुँचते ही सवारी मिल जाए, कई बार तो घंटों इन्तेजार करना पड़ जाता था,<br />हाँ क्यों नही, बेठो, वो चहकते हुए<br />बोला कितना लोगे<br />पांच रुपये<br />चांदपोल के पाँच रुपये<br />ज्यादा नही मांग रहा हूँ बाबूजी, बोहनी का वक्त है इसलिए पाँच ही मांग रहा हूँ, वरना तो छः रुपये से कम नही लेता,<br />रहने दे, सिखा मत, चार रूपये लेना है तो बोल, वरना अभी बस आने ही वाली है,<br />बस का नाम सुनते ही कालू कुछ दीला पड़ गया, फिर बोहनी करनी थी सो वह चार रुपये मैं सवारी को ले जाने के लिए तैयार हो गया, सवारी के बैठते ही कालू ने चला दिए पेडल पर पैर ,चांदपोल पहुंचकर सवारी जब उसे पाँच रुपये का नोट देने लगी तो उसने खुले नही होने की समस्या बताईसवारी ने बुरा सा मुह बनाया,<br />खुले नही है, मैं सब समझता हूँ, लेकिन मैं भी कम नही हूँ,<br />कहते हुए सवारी पास ही पान वाले कि दुकान पर चली गयी,पान वाले ने कुछ लिए बगेर खुले देने से मन कर दिया, इस पर सवारी ने कहा,<br />मैं कुछ खाता तो हूँ नही एक रुपये कुछ भी दे दे यार, वो रिक्शे वाले को किराया देना है,<br />पान वाले ने उसे एक गुटखा देते हुए खुले रुपये पकड़ा दिए, सवारी ने गुटखा फाड़ कर मसाला मुह मैं डाला कालू को चार रुपये पकडाये और चल दी अपनी राहकालू को ख़ुद पर ही हँसी आ गयी, एक रूपया जो उसका जायज हक़ थासवारी उसे देने के बजाय उससे एक ग़लत आदत की शुरुआत कर गयी, उसने आसमान की और देखाऔर चला दिए पेडल पर पैर,<br /><span class=""></span><strong><em><span style="color:#000099;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-52870126081386449972008-10-11T05:12:00.000-07:002008-10-11T05:15:08.781-07:00नजरिया 2सीट दो की है तो क्या हुआ, थोड़ा सा खिसक कर किसी को बेठा लेंगे तो क्या चला जाएगा ? इंसानियत भी कोई चीज होती है , बस मैं मेरी बगल मैं खड़े सज्जन सीटों पैर बेठे लोगों को कोसते हुए बडबडा रहे थे, अगले स्टोपेज पर एक सवारी उतारी तो उन महाशय को भी सीट मिल गयी, वह भी मेरी तरह ही दुबले पतले से थे, सीट मैं थोडी जगह दिखाई दे रही थी, इससे मुझे भी थोडी उम्मीद जगी, मैंने उनसे कहा भाईसाहब, थोड़ा खिसक जाओ तो मैं भी अटक जाऊं,इतना सुनते ही वे भड़क गए,बोले, सेट दो की है और हम दो ही बैठे हैं, कहाँ जगह दिख रही है तुम्हें ? अपनी सहूलियत देखते हैं सब, दूसरे की परेशानी नही समझाते, अब मुझे समझ मैं आ गया था कि दो की सीट पर दो ही क्यों बेठे हैं,<br /><strong><em><span style="color:#000099;">शिवराज गूजर</span></em></strong>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-265223072135988642008-08-23T06:12:00.001-07:002008-08-23T06:14:20.239-07:00नजरियादेखो तो कैसे ठूंस -ठूंस कर भर रखी है सवारियां, कोई मरे तो मरे इनका क्या ? इन्हें तो बस सवारियों से मतलब,आती जाती बसों की स्थिति पर बगल में खड़े शर्माजी कंडक्टरों और बस मालिकों को कोस रहे थे, इसी दौरान उनकी बस आ गईउसकी हालत औरों से ज्यादा ख़राब थी , शर्माजी बस की और लपके , मैंने कहा, शर्माजी बहुत भीड़ है, पीछे वाली मैं चले जाना , पीछे वाली कोनसी खाली आएगी, उसका भी यही हाल होगा , ऐसे इंतजार करता रहा तो जा लिया दफ्तर, बात पूरी होने तक शर्माजी बस पर लटक चुके थे एक पैर पर,<br /><span style="color:#3333ff;"><strong><em>शिवराज गूजर</em></strong></span>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4253811196674207964.post-44941719854412669692008-08-22T05:50:00.000-07:002008-08-22T05:55:33.852-07:00श्रीगणेश<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihV8v2ezWi3gN8m7BTmtKSjhn_Wd60F2fXY_HVAPWHTpImHz9-v-XZUU60TIrpYHFXf1MlYbNg6tt69rWJiDUp-0_qxQMBybOK0WNIkG5dfvBaznfE5nOmGJGakN4pFV1mVcZ0nSSHaw4/s1600-h/ATT00631.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5237324798041927634" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; CURSOR: hand; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihV8v2ezWi3gN8m7BTmtKSjhn_Wd60F2fXY_HVAPWHTpImHz9-v-XZUU60TIrpYHFXf1MlYbNg6tt69rWJiDUp-0_qxQMBybOK0WNIkG5dfvBaznfE5nOmGJGakN4pFV1mVcZ0nSSHaw4/s320/ATT00631.jpg" border="0" /></a> <div>ॐ गुरूजी चाँद सूरज, जिह्वा ज्वाला सरस्वती, हिरदे बसो हमेश, भूल्या अक्षर कंठा कराओ तो गौरी पुत्र गणेश, लगी कूंची खुल्या कपाट, जा देख्या ब्रह्माण्ड का घाट, नो नाडी सुरसत बहे, गुरु शब्द लिव लागी रहे, हिरदे कूंची का जाप सही तो महादेवजी ने कही,<br />कुछ भी कराने से पहले गणेशजी का और कुछ भी लिखने से पहले माँ सरस्वती का स्मरण जरूरी है. मैंने भी एक छोटी सी स्तुति से दोनों का ध्यान किया है.<br /><strong><em><span style="color:#3333ff;">शिवराज गूजर</span></em></strong> </div>Unknownnoreply@blogger.com0